maa par kahani | माँ पर कहानी एक लघुकथा

दीनापुर नाम का खूबसूरत गांव एक छोटी सी नदी के किनारे था। वहां शोभित नाम का एक लड़का अपनी मां सरस्वती के साथ रहता था।

मां-बाप का ऋण कभी भी उतारा नहीं जा सकता है। कैसी भी परिस्थितियां आए लेकिन उनकी सेवा करने से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। इस कहानी के माध्यम से यही सन्देश आप सभी के दिलों तक पहुँचाने का प्रयास किया है 


maa par kahani | माँ पर कहानी | लघुकथा
माँ

माँ पर कहानी एक लघुकथा 

दीनापुर नाम का खूबसूरत गांव एक छोटी सी नदी के किनारे था। वहां शोभित नाम का एक लड़का अपनी मां सरस्वती के साथ रहता था।


जब वह छोटा था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।


सरस्वती उसकी पसंद का नाश्ता बनाती फिर उसको बड़े प्यार से बुला कर अपने पास बिठाकर खिलाती थी --"आजा बेटा नाश्ता कर ले और फिर स्कूल जा .....देर हो रही है!  मुझे भी कुछ करना है ।"

शोभित देखता था कि सामने रूखी रोटी है तो वह जिद करने लगता था-" ऐसे नहीं मां ,,,,,,,,मैं ऐसे नहीं खाऊंगा मुझे यह रूखी रोटी अच्छी नहीं लगती । मैं तो दूध के साथ खाऊंगा।
मुझे दूध भी चाहिए।"

सरस्वती लाचार हो जाती थी और वह दुखी होकर आंसू बहाने लगती थी फिर वह अपने बेटे को समझाती-" बेटा वह हमारे यहां नहीं है ......अच्छा रुक!  अभी पड़ोस में बंसी के यहां जा कर देखती हूं.... उसके यहां दूध होता है ।"

वह दूध की तलाश में पड़ोस में कभी दीना तो कभी बंशीधर के यहां जाती और उनसे दूध मांगती।
सरस्वती -"भैया बंसी ! मेरे शोभित को दूध के बिना खाना अच्छा नहीं लगता है..... मुझे एक गिलास दूध रोज दे दिया करो।"

बंसीधर --"इसके बदले में तुम्हें हमारा काम भी करना होगा । मुन्ने की मां बीमार रहती है और हम बर्तन धोने के लिए एक बाई की तलाश कर रहे हैं ,,,,तो ऐसा करो ,,,तुम दोपहर को मेरे बर्तन धो दिया करना और उसके बदले में मैं तुम्हें दूध और  कुछ रुपए भी दूंगा।"

सरस्वती -"ठीक है भैया ......

इसी तरह गांव में सबका एक दूसरे से कनेक्शन जुड़ा होता है। नगद रुपयों की बजाए सामान ,,से काम चलाया जा सकता है,,,,,और काम करके भी काम निकल सकता है।

सरस्वती दिन भर मजदूरी करती और जब मजदूरी नहीं मिलती तो गांव में ही जिस किसी का काम मिलता तो कर लेती।
शोभित को वह अच्छे अच्छे कपड़े पहनाती,,,,, अच्छा खाना खिलाती और स्कूल में पढ़ाती थी।"

शोभित-" तुम कितनी कमजोर हो गई हो माँ !  जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं तुम्हें कुछ भी काम नहीं करने दूंगा !"

सरस्वती उसके सिर पर हाथ फेरती हुई कहती-- "मेरा राजा बेटा नौकरी करके रुपए लाएगा और मैं रानी की तरह बैठकर राज करूंगी !"

शोभित उसके गले लगकर कहता-"अच्छा माँ,,,, मुझे  एक अच्छी सी कहानी सुनाओ।" फिर वह उसको अच्छी अच्छी कहानियां सुनाती थी। शोभित आराम से सो जाता था।

किसी किसी दिन ऐसा होता कि खाने के लिए कुछ भी नहीं होता तो सरस्वती खाना नहीं खाती और बस शोभित को ही खिला देती ।

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शोभित --"मां ! आओ मेरे साथ खाना खाओ ! "

सरस्वती -"बेटा मेरे पेट में दर्द हो रहा है ...मैं खाऊंगी तो बीमार हो जाऊंगी,,,,, शायद बदहजमी हो गई है। खाने से और भी तकलीफ बढ़ जाएगी ।

वह पानी लेने के लिए चली गई ।

शोभित ने अपने लिए दाल परोसने के लिए भगौने का ढक्कन खोला तो चौंक पड़ा।

शोभित--" अरे !!  यह तो बिल्कुल खाली है,,,,, फिर उसने चावल का भगौना देखा और बड़बड़ाया-"अरे यह भी खाली है...अब समझा ,,,,मां के लिए कुछ रह ही नहीं गया है।
जो कुछ था उसने मुझे खिला दिया और अपने लिए बहाना बना रही है ,,,,ताकि मुझे पता ना चले और मैं आराम से खा लूं ।"

उसकी आंखों में आंसू भर आए।

इन मुसीबतों के साथ शोभित बड़ा होता गया। उसकी शहर में नौकरी लग गई। वह एक अधिकारी बन गया।
उसके बाद उसकीशादी हो गई।
सरस्वती भी शहर में आकर कुछ दिन रही। बहू सीमा ने उसका जीना हराम कर दिया । उस पर बहुत उल्टा सीधा आरोप लगा कर शोभित के कान भरती रहती थी।

सीमा--" मैं मां जी को कितना समझाती रहती हूं  कि अच्छे कपड़े पहना करो ,,,थोड़ा अच्छा रखरखाव करा करो,,,,,, आखिर  आप एक अधिकारी हैं ।
आपसे मिलने वाले लोग आते हैं तो इन्हें देख कर कहते हैं कि उन्होंने एक नौकरानी रखी हुई है। यह हमारी जानबूझकर बदनामी कराती हैं।"

  शोभित -"तुम ठीक कह रही हो। हमारा भी स्टैंडर्ड है और ये उसको गिराने में लगी हुई हैं।"


सीमा तुनक कर बोली-" इससे तो अच्छा है कि ये गांव में जाकर रहे।
शोभित को उसकी बात सही लगी और वह अपनी मां के पास आकर बोला--"मां आप गांव में रहो मैं आपका खर्चा भेज दिया करूंगा।"

सरस्वती को उसकी बात बहुत खराब लगी ।उसके मन को एक झटका लगा,,,,,, कि उसका बेटा क्या उससे ऐसी बात भी कह सकता है?

यह तो उसने कभी सोचा भी नहीं था।  न ही उसे ऐसी उम्मीद थी।

वह बड़े दुखी स्वर में बोली -"बेटा अगर मेरे रहने से तुम्हारी बदनामी होती है तो मैं गांव में रह लूंगी ,,मैं तुम्हारा खर्चा लेकर क्या करूंगी ,,,,,जब तक मेरे हाथ पैर चलते हैं,,,, मैं कमा लिया करूंगी।"

शोभित ने मन में सोचा कि लगता है मां को बुरा लग गया ,,,,लेकिन अगर वह मां को रोकता ,,,तो उसकी पत्नी नाराज हो जाती ,,,,,और वह अपनी पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था ,,,इसीलिए वह खामोश रहा ।सरस्वती अपने गांव चली गई।


अचानक एक दिन  शोभित बीमार पड़ गया।

वह हॉस्पिटल दवा लेने के लिए गया । वहां डॉक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा। उसने चेकअप करवाया ।

जब रिपोर्ट के बारे में डॉक्टर ने उसे बताया उसे सुनकर उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।

उसके दोनों गुर्दे खराब थे।
बड़े दुखी मन से वह अपने घर आया । इस समय उसके पैर ऐसे लग रहे थे जैसे मन -मन भर के हो गए हों।
उसने सीमा को बताया-"सीमा मेरे दोनों गुर्दे खराब हैं .... अब मेरी जिंदगी का अंत समय आ गया है।  डॉक्टर ने कहा है अगर तुरंत गुर्दा नहीं बदला गया तो मेरी मौत भी हो सकती है।"

यह सुनकर सीमा बहुत घबरा गई उसने शोभित को समझाते हुए  कहा -"इतनी जल्दी कैसे हार मान सकते हो?  हम हर जगह पता करेंगे और गुर्दा बदलवाने की कोशिश करेंगे अगर कोई देने वाला मिल जाए तो बहुत अच्छा है।

उसके बाद शोभित और सीमा ने बहुत कोशिश की । दोस्तों, परिचितों और रिश्तेदारों से कहकर देखा लेकिन उसे गुर्दा दान करने वाला नहीं मिला।

अचानक एक दिन एक गुमनाम दानकर्ता ने उसको अपना गुर्दा दान कर दिया जिससे उसका ऑपरेशन हो गया।  15 दिन अस्पताल रहने के बाद शोभित अपने घर आ गया।

उसकी पत्नी सीमा उससे बोली --"देख लिया तुमने अपनी मां का प्यार ?
वह कितनिबकठोर है!! दुनिया जहान के लोग आकर तुमको देख गए  लेकिन तुम्हारी मां तुम को देखने तक नहीं आई !"

सीमा ने जैसे शोभित के मन की ही बात कह दी। वह भी अपने मन में सोच रहा था कि उसकी मां उसे  देखने जरूर आएंगी लेकिन वह नहीं आई।

इस बात से उसको बहुत दुख लगा था।

शोभित अब अपनी मां से बहुत नफरत करने लगा था । वह उसको कभी गांव में देखने नहीं जाता था।

एक  दिन गांव से उसके पड़ोसी बंशीधर का फोन आया--" हेलो शोभित तुम्हारे घर से बदबू आ रही है मकान बंद है यहां आकर देखो।"

शोभित जब वहां गया तो उसको आया हुआ देखकर बंशी भी उसके पास आ गया और उसने कहा --" चार-पांच दिनों से तो तुम्हारा घर खुला ही नहीं है।  हम लोगों में से किसी ने चाची को देखा ही नहीं है ।

उसने देखा  कि मकान अंदर से बंद था।
उसने दरवाजा तोड़ा फिर अंदर गया तो उसने देखा कि भीतर उसकी मां मरी पड़ी है।
अब तक वहां पड़ोसी भी जमा हो गए थे लेकिन यह दृश्य देखकर सभी चौक पड़े क्योंकि  किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि सरस्वती की इस तरह से मौत होगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा।

वे लोग समझते थे कि सरस्वती अपने बेटे के पास चली गई है।

बंशी बोला--" शायद उन्हें 5,,,,,6 दिन मरे हुए हो गए होंगे। वह बीमार हो गई थीं उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। वह स्वाभिमानी थी वह किसी का एहसान नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि उनसे गांव के कुछ लोगों ने कहा था कि तुम इधर-उधर मारी मारी फिरती हो तुम्हारा जवान बेटा तुम्हारी मदद नहीं करता,,,,, जरूर तुम्हीं में कोई कमी होगी।"

शोभित तब भी नहीं पसीजा वह बोला -" सामाजिक दबाव में मां का क्रिया कर्म तो करना ही पड़ेगा लेकिन मेरी इच्छा नहीं है।"

मां का दाह संस्कार करके शोभित घर  लौट कर आया तो पड़ोस के सभी लोग जमा हो गए और वे शोभित को धिक्कारने लगे।


बंसीधर बोला --"शोभित!  हम तुम्हें ऐसा नहीं समझते थे .......तुम्हारी खातिर चाची ने पूरी जिंदगी मजदूरी की और अपने शरीर का,,, खानपान का ,,,,कभी कोई ध्यान नहीं रखा ।तुम सब भूल गए??


रामचंद्र बोला--"कौन इतना करता है?  तुम्हारी पत्नी ने उन्हें शहर से लड़ झगड़ कर भगा दिया ,,,,,और कोई माँ  होती तो तुम को देखने तक नहीं जाती लेकिन उन्होंने तो अपना गुर्दा तक तुम्हें दे दिया।"

यह बात सुनकर शोभित को जैसे करंट लगा...

क्या !!!!-
मुझको गुर्दा देने वाली मेरी मां थी ???

वंशी उदास आवाज में बोल--"तभी तो वह तुमको देखने नहीं जा सकी उसने डॉक्टर से कह दिया था की शोभित को मत बताना कि उसे गुर्दा मैं दे रही हूं...... नहीं तो शायद वह बेचारा मेरी कमजोर हालत को देखते हुए गुर्दा नहीं लेगा,,, लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा ठीक-ठाक रहे ,,,,,मेरा क्या है मैं तो मरने को ही बैठी हूं,,,,

शोभित की आंखों से आंसू बहने लगे। अब वह बहुत पछता रहा था --" हे भगवान !! यह मैंने कैसा अनर्थ किया!!
जिस माँ ने अपना सुख नहीं देखा और मेरे लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी उस मां को मैं अंतिम समय में अपने पास भी नहीं रख सका ,,,,,,,,

उसे याद आया जब वह बचपन में अपनी मां से कहता था
--"मां जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो तुम्हें कमाकर खिलाऊंगा....

तो मां कहती थी कि..... तेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं रानी बनकर राज करूंगी .......
उसने अपनी मां को यह सुख दिया था कि मरते समय भी उसको देखने वाला कोई नहीं था ।उसकी मौत लावारिसों की तरह हुई।

अब शोभित बहुत पछता रहा था वह जोर-जोर से रो रहा था। और कह रहा था --"मां मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत  किया।
अपने नालायक बेटे को माफ कर देना मां ,,,,मुझे माफ कर देना,,,, मैंने तो तुम्हें एक दमड़ी तक नहीं दी और तुमने फिर भी मेरे लिए जिंदगी कुर्बान कर दी।"
मैंने तेरे साथ दुश्मनों सा बर्ताव किया।  वह सिर पटक पटक कर रो रहा था ,,,,,,,लेकिन अब  सिवाय पछताने के क्या हो सकता था ?

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